Hindi Gay sex story – आजादी दिवस पर
आजादी दिवस पर
लेखक : आपका प्यारा गाण्डू सनी
प्रणाम पाठको, एक बार फिर से अपनी मस्त गाण्ड चुदाई लेकर हाज़िर हूँ, काफी दिनों से मैंने अन्तर्वासना पर कुछ नहीं भेजा क्यूंकि मैं काल्पनिक और ख्याली पुलाव नहीं पकाता, चुदा तो मैं रहा था लेकिन किसी नए बंदे से नहीं मरवाई थी इसलिए कुछ नहीं लिख पाया। जैसे ही मैंने नये लण्ड लिए तो सोचा उनको जल्दी से अपने आशिकों के साथ शेयर कर दूँ।
बात पन्द्रह अगस्त की ही है, काफी दिनों से मैंने नया लण्ड नहीं लिया था जिस दिन से घर के पास वाला वो बाग़ काट दिया गया है, उसी दिन से लण्ड लेना मुश्किल हो रहा है पर
उम्मीद पर जिंदगी कायम है।
उस दिन सड़कों पर आवाजाही बहुत कम थी, लोग झण्डा चढ़ाने में लगे थे, कुछ लोग छुट्टी का आनन्द लेते हुए टी.वी देख रहे थे। उस दिन ऑटो भी कम चल रहे थे तो मैं अपनी बाईक लेकर घर से निकला।
निकला तो था लेकिन कसम से मेरे दिमाग में चुदाई का ख्याल नहीं था। कहते हैं ना दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम ! लण्ड लण्ड पर लिखा है गाण्ड मरवाने वाले का नाम !
वही हुआ, मेरे टी.वी का रिमोट खराब हो गया था, मैंने सोचा नया रिमोट लेकर आता हूँ, सड़कों पर भीड़ नहीं थी, जल्दी चला गया था, वहाँ से वापिस निकला था कि बारिश होने लगी, मेरा बदन भीगने लगा, मेरी टीशर्ट मेरी छाती से चिपक गई जो लड़कियों जैसी नर्म है और काफी बड़ी हैं। मेरी नज़र जब छाती पर गई, मेरे अंदर की औरत जागने लगी।
बस स्टॉप के शेल्टर में खड़े इक्का दुक्का लोगों की नज़रें मैंने अपनी छाती पर जाती देखी तो मेरी आग भड़कने सी लगी, फिर भी दिमाग को किसी ओर तरफ लगाया। तभी एक मोड़ पर एक बंदे ने मुझे हाथ दिया लिफ्ट के लिए ! पहले मैंने सोचा कि नहीं रुकना, फिर आगे जाकर रोक ही लिया।
वह बोला- बाईपास तक छोड़ सकते हो?
“बैठ जाओ।”
वो बैठ गया लेकिन मेरे साथ सट कर नहीं दूरी बना कर !
मैंने कहा- वैसे जाना कहाँ है?
वो बोला- अंतरयामी कालोनी में !
“वहाँ कहाँ रहते हो?”
बोला- वहाँ एक मकान बन रहा है, मैं वहाँ काम करता हूँ, रात को चौकीदारी करता हूँ।
मैंने जानबूझ ब्रेक लगाई, वो करीब आ गया, अचानक से लगे उस झटके की वजह से मेरे कंधे पर हाथ रख सहारा लिया। बारिश पड़ रही थी, गीले बदन पर मर्द के हाथ ने कुछ देर पहले मेरे अंदर जागी औरत को दुबारा जगा दिया।
अब वो मेरे साथ सट चुका था, वो नहीं बोला। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने बाईक बहुत धीरे धीरे चलानी चालू कर दी और गाण्ड को पीछे की तरफ धकेला। उसने अब दोनों हाथ मेरे कंधों पर टिका दिए और आगे सरका।
मैंने और दबाव दिया ताकि वो पूरा समझ सके। सड़क सुनसान थी, बारिश और तेज़ हो गई। मैंने उसके हाथ कंधों से हटा कमर पर रखवा दिए, फ़िर भी दोनों चुप थे, बस अंग हरकत में डाल रखे थे, उसने मुझे कस कर बाँहों में ले लिया और उसके हाथ मेरे चिकने पेट पर रेंगने लगे।
मैंने टीशर्ट ऊपर कर दी उसने हाथ अब अंदर घुसा लिए। अब तो और मस्त था। उसने मेरी गर्दन पर अपने होंठ लगाए, भले ही होंठ लाल गुलाबी नहीं थे लेकिन एक मर्द के थे जिसने मुझे हिला दिया। मैंने गाण्ड उठाई उसने हाथ सरका दिया, उंगली से मेरे छेद का जायजा लेने लगा। मैंने हाथ पीछे ले जा कर उसके खड़े लण्ड को पकड़ लिया।
बोला- तुम बहुत मस्त हो !
“जानू, तुम कौन सा कम हो ! एक तकड़े मर्द जैसा औज़ार है आपका तो !”
इसको गाण्ड में भी डालवागे जानू?””मुँह में भी डालूँगा ! चिंता क्यूँ करते हो !”
वो ख़ुशी से पागल हो गया और मेरे मम्मे दबाने लगा। बारिश पूरी तेज़ थी, कहीं मंजिल ना आ जाए मैं बाईक को उन्ही सूनी गलियों में घुमाता जा रहा था।
हम एक जगह रुक गए, पेड़ के पीछे चले गए। मैंने जल्दी से साले का लण्ड निकाला, काले रंग का मोटा लण्ड देख मेरी गाण्ड में कुछ कुछ होने लगा था, मैं वहीं घुटनों के बल गिर गया, चपड़-चपड़ उसका लण्ड चाटने लगा, मुँह में डालकर चूसने लगा।
बारिश भी कहर की थी जिसकी वजह से हमें किसी का डर नहीं था। उसका कभी किसी ने चूसा नहीं था इसलिए मजे लेते लेते जल्दी ही उसका वीर्य गिरने लगा था। पानी बरस रहा था, उसने मुझे नहीं बताया, उसने एकदम से सर को दबाया और उगल दिया।
जब मैं खड़ा हुआ, उसने टीशर्ट उठाई मेरे निपल चूसने लगा, बोला- मेरे घर चलते हैं, आज बारिश की वजह से काम बंद है।
दोनों वहाँ पहुँचे, उसने बिस्तर ज़मीन पर लगाया हुआ था।
मैंने जल्दी से कपड़े उतारे, नंगी होकर उलटी लेट गई।
वो आकर बोला- क्या गाण्ड है साले तेरी ! तुम तो लड़की जैसे हो !
“आओ, मुझे लड़की की तरह बाँहों में लेकर मसलो, चूमो ! फिर गाण्ड मारने दूँगा।”
उसका पहले झड़ गया था इसलिए अब वो लंबा खेल खेलने को तैयार था उसने लण्ड मेरी चिकनी जांघों में अटकाया और लड़की की तरह मेरे मम्मे मसलने लगा और दबाने लगा। जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने टाँगे खोल ऊपर उठा ली वो समझ गया। उसने थूक से गीला करके लण्ड मेरी गाण्ड में उतारा देखते देखते पूरा मेरी गाण्ड में समा गया था। पूरा मजा दे रहा था, कितने दिन बाद नया लिया था।
आधा घंटा उसने अपना घंटा मेरी गाण्ड में डाल डाल कर मुझे बेहाल कर दिया था। मैं उसका इतना दीवाना हो गया हूँ कि रोज़ शाम को उसकी थकान उतारने जाता हूँ !
जल्दी ही ताजे लण्ड से हुई एक और चुदाई आपके सामने हाज़िर हूँगा, तब तक के लिए मुठ मारते रहो।