ट्रेन का यादगार सफर
Hindi font Gay sex story
वरिन्दर सिंह
हैलो दोस्तो आज मैं आपको अपने एक यादगार ट्रेन के सफर की कहानी सुनाने जा रहा हूँ।
यह बात है 20 मार्च की। मैंने अपने 3 दोस्तों के साथ लुधियाना से दिल्ली जाना था। सुबह जल्दी पहुँचना था इसलिए सोचा के रात को कोई ट्रेन पकड़ लेते हैं।
मैं ट्रेन का सफर कम ही करता हूँ इसलिए मुझे यह याद नहीं कि कौन सी ट्रेन थी। हम सब रेलवे स्टेशन पहुँच गए, एक दोस्त टिकट ले आया दूसरा मौसम को रंगीन बनाने के लिए व्हिस्की और नमकीन वगैरह ले आया। वैसे एक बोतल मेरे बैग में भी पड़ी थी।
ट्रेन आई हम सब ट्रेन के बिल्कुल आखरी डिब्बे में चढ़ गए, डिब्बा बिल्कुल खाली था।
गाड़ी चली तो हमने डिब्बे की सब खिड़कियाँ बंद कर ली और व्हिस्की निकाल ली। ट्रेन चलने के साथ ही हमारा दारू का दौर भी शुरू हो गया।
खूब हँसते गाते हमारा सफर कट रहा था।
जब राजपुरा स्टेशन आया तो हमारे डिब्बे में एक औरत और एक लड़का चढ़े, जो हमसे आगे वाली सीट पर जाकर बैठ गए। हमने कोई ध्यान नहीं दिया और अपने में ही मस्त रहे।
थोड़ी देर बाद वो औरत उठ कर बाथरूम की तरफ गई, हमारे पास से गुजरते हुये उसने हमारी तरफ बुरा सा मुँह बना कर देखा, वो मुँह में कुछ बुड़बुड़ा रही थी, हमें लगा कि शायद उसे हमारा ट्रेन में शराब पीना बुरा लगा हो।
पर हमें इससे क्या, अगर साली को बुरा लगा तो अपनी सीट पर बैठे जाके और बाथरूम जाना है तो डिब्बे के दूसरी तरफ भी तो बाथरूम है, वहाँ जाए।
हम सब अपने में ही मस्त रहे।
जैसे वो पहले गई थी वैसे ही बाथरूम से वापिस आते हुये वो बुदबुदाते हुए फिर से निकाल गई।
इस पर अमित बोला- तकलीफ क्या है साली को, ट्रेन क्या इसके बाप की है?
रोहित बोला- अरे छोड़ यार, माँ चुदाये साली, तुझे क्या, अपना मूड मत खराब कर।
अभी हम बातें कर ही रहे थे कि वो फिर से हमारे सामने आकर खड़ी हो गई। उम्र करीब 50-55 साल, कद छोटा, रंग साफ, मोटा शरीर, साधारण सी शक्ल।
जब वो हमारे सामने ही आकर खड़ी हो गई तो मैंने पूछा- जी कहिए।
वो बोली- आप लोग शराब पी रहे हो?
मोहित ने कहा- जी हाँ, आपको कोई ऐतराज है क्या?
वो बोली- कौन सी है?
हमें बड़ी हैरत हुई, मैंने कहा- रॉयल स्टेग है।
‘रॉयल स्टेग, हम्म, एक पेग मुझे मिलेगा?’
हमें बड़ी हैरानी हुई कि एक अंजान अकेली औरत ट्रेन में चार अंजान लोगों से पेग मांग रही है।
मोहित हम सबमें थोड़ा दिलेर था, उसने कहा- पेग क्या आंटीजी, नमकीन भी लीजिये, आइये, बैठिए।
वो आगे बढ़ी और मोहित के ही पास बैठ गई। मोहित ने एक मोटा सा पेग बनाया, थोड़ा सा पानी डाला और पेग आंटी की तरफ बढ़ा दिया, उसने भी गिलास पकड़ा और दो घूंट में ही सारा गिलास पी गई।
उसके बाद मोहित ने नमकीन का पैकेट उसकी तरफ बढ़ाया- लो आंटीजी नमकीन खाओ। उसने थोड़ा सा नमकीन हाथ में लिया और खा लिया।
हम सबने एक दूसरे को देखा और चारों शैतानों ने अपने दिल की बात आँखों आँखों में ही एक दूसरे को समझा दी कि यह औरत चालू है।
फिर मोहित ने आगे बात बढ़ाई- तो आंटीजी, कहाँ जा रही हैं आप?
वो बोली- पहले तो मुझे आंटी मत कहो, मेरा नाम सुषमा है।
‘हाँ यार, अब जब साथ बैठ कर खा पी रहे हैं तो हम सब तो दोस्त ही हुये न, क्यों सुषमा?’ मैंने भी उसके साथ थोड़ा फ्री होते हुये कहा।’बिल्कुल, अब तो हम सब एक जैसे हैं।’ वो भी बोली।
बस फिर बातों का एक लंबा सिलसिला चल पड़ा। वो अपने भतीजे के इलाज के लिए उसके साथ दिल्ली जा रही थी।
यह बात हमें कुछ अजीब लगी पर हमें क्या, फिर हमने उसके भतीजे को भी बुला लिया, वो लड़का कम और लड़की ज़्यादा लग रहा था, बहुत नर्म और नाज़ुक सा।
मैंने उसे अपने पास बैठा लिया और उसे भी एक पेग दिया।
अब दो दो तीन तीन पेग गटक जाने के बाद सब के अंदर का जानवर जाग रहा था। सच कहूँ एक तो घंटा बजने लगा और अब तो आंटी पर भी दिल आ रहा था और दूसरा उसका भतीजा भी हमने टेस्ट करके देखा, वो साला लौंडा था।
मतलब हम चारों के लिए दो सुराख थे। शायद हमारी नियत को आंटी भी भांप गई थी तो बातों बातों में उसने भी अपनी साड़ी का पल्लू गिरा दिया।
अब जब वो खुद ही अपने ढलके हुये मम्मों का प्रदर्शन कर रही थी तो हम सब भी शेर हो गए।
मोहित ने बातों बातों में आंटी की गर्दन के ऊपर से हाथ डाल कर अपनी तरफ खीचा और और आंटी के गाल पर एक पप्पी जड़ दी- आंटी जी आप बहुत अच्छी हो, आप जैसी खुल्ली औरतें हमें बहुत पसंद हैं।
आंटी ने भी हंस कर बोला- ओ हो… तुम तो बहुत ही बेसब्रे हो, अभी तो दिल्ली बहुत दूर है।
यह कह कर वो हीहीही करके हंसी।
पर मोहित ने इतनी देर में अपना एक हाथ उसके ब्लाउज़ में डाल कर उसका स्तन पकड़ लिया।
अब जब इतना होने पर भी सुषमा हंस रही थी तो मतलब साफ था। मैंने भी अपने पास बैठे जॉनी की जांघ पर हाथ फेरा तो उसने भी स्माइल दे दी।
मतलब यह कि रास्ता हर तरफ से साफ़ था।
रोहित उठ कर गया और डिब्बे के चारों दरवाज़े लोक कर आया। मैंने अपनी पैंट की ज़िप खोली और जॉनी का सर पकड़ कर नीचे को झुकाया, जॉनी ने मेरी बेल्ट खोली, फिर पैंट और मेरी चड्डी नीचे खींच कर मेरा लण्ड बाहर निकाला।
मैंने उसका मुँह अपने लण्ड से लगाया तो उसने बड़ी नरमी से मेरे लण्ड के सुपाड़े को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया।
आंटी ने देखा तो बोली- जॉनी तो न सच्ची बहुत ही वो है, बस लण्ड देखा नहीं के खाने को दौड़ता है।
तो मोहित बोला- तो क्या हुआ आंटी, तू भी चूस ले, लण्डों की क्या कमी है यहाँ !
यह कह कर मोहित खड़ा हुआ और उसने अपनी पैंट और चड्डी बिल्कुल ही उतार दी और आंटी के सामने नंगा खड़ा होकर लण्ड हिलाने लगा- ले चूस ले तू भी।
आंटी ने मोहित का लण्ड हाथ में पकड़ा और मुँह में लेकर चूसने लगी।
अब तो रोहित और सुमित भी उठ खड़े हुये और आंटी का ब्लाउज़ खोल कर उतार दिया, बेशक उसके मम्मे लटके से थे, पर थे बड़े बड़े और भारी तो दबाने में बड़ा मज़ा आ रहा था।
और जब शराब का नशा चढ़ा हो ऊपर से अपने आप एक गश्ती आपको खुद देने आ जाए तो कौन मना करता है।सब अपने अपने लण्ड निकाल कर आंटी को कभी जॉनी को चुसवा रहे थे कभी आंटी को।
जब अम्बाला छावनी रेलवे स्टेशन आया तो मैं ट्रेन से नीचे उतरा, स्टेशन लगभग खाली पड़ा था। मैं भाग कर गया और बाहर दुकान से कोंडोम ले कर आया।
डिब्बे में आकर मैंने कहा- लो भाई हेलमेट का इंतजाम हो गया अब कर लो बुआ भतीजे को काबू में !
बस फिर तो दो मिनट में ही हम सब 6 के 6 जने नंगे हो गए, न किसी का डर न फिक्र।
मैंने तो सब से पहले जॉनी की गांड मारने की सोची, बाकी सब तो आंटी पर टूट पड़े।
मैंने एक कोंडोम जॉनी को दिया, उसने कोंडोम मेरे लण्ड पे चड़ाया और ट्रेन की सीट पे लेट गया।
मैंने ढेर सारा थूक उसकी गांड के छेद पे लगाया और हाथ की उंगली अंदर डाल कर गांड को चिकना किया, फिर अपने लण्ड को उसकी गांड पे रखा और हल्के से लण्ड का सुपाड़ा अंदर को धकेला।
बड़े आराम से सुपारा उसकी गांड में घुस गया।
मैंने थोड़ा सा और थूका और धीरे धीरे आगे पीछे करते हुये, अपना लण्ड उसकी गाण्ड में उतार दिया। जॉनी के मुख से सिसकारियाँ फूट रही थी, पता नहीं उसे गांड मरवा कर मज़ा आ रहा था या नहीं पर मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। बहुत ही कसी हुई गांड थी उसकी।
सामने वाली सीट पर रोहित आंटी को चोद रहा था और मोहित और सुमित आंटी को लण्ड चुसवा रहे थे।
आंटी की तो जैसे लाटरी निकाल आई हो।
थोड़ी देर जॉनी को चोदने के बाद मैंने उसे सीधा लेटने को कहा, जब वो सीधा लेटा तो मैंने उसके टांगें ऊपर उठा कर दोबारा से उसकी गांड में लण्ड घुसेड़ा और फिर से चोदना शुरू किया।
जॉनी का अपना लण्ड भी पूरी तरह से तना हुआ था। पहले मैं सिर्फ जॉनी के गालों को ही चूम रहा था, पर फिर गालों से होता हुआ होंठों तक भी पहुँच गया और फिर होंठ जीभ सब चूस डाले।
बेशक जॉनी एक मर्द था पर एक्टिंग ऐसे कर रहा था जैसा कोई औरत हो, यह पहली बार था के मैं किसी लौंडे को चोद रहा था, उसका ताना हुआ लण्ड मैं अपने पेट पे घिसता हुआ महसूस कर रहा था।
5-6 मिनट की जोरदार गांड चुदाई के बाद मैं झड़ गया।
जब मैंने अपना लण्ड बाहर निकालना चाहा तो जॉनी ने अपनी गाँड टाइट कर ली जिस से मेरा लण्ड अटक गया।
मैंने पूछा- क्या हुआ, अभी दिल नहीं भरा क्या?वो बोला- नहीं अभी नहीं !
तो मैंने कहा- चिंता मत कर, 4 जने हैं तुम दोनों की माँ चोद कर रख देंगे।
तो आंटी बोली- अरे लल्ला, मैं एक बार में एक साथ 15-15, 20-20 जन को ऊपर लिया है, तुम चार क्या चीज़ हो, अगर सारी रात एक के बाद एक भी मुझे चोदो तो भी मैं नहीं थकूँगी।
आंटी की बात सुन कर हम तो हैरान ही हो गए, एक बार में 20 लोग चुदाई कर रहें हो तो बेचारी की क्या हालत होती होगी।
खैर मैं फारिग हुआ तो रोहित जॉनी पर चढ़ गया, मैंने एक पेग बनाया और पी लिया, थोड़ी देर बाद मोहित भी आंटी की चूत मार कर फारिग हो गया और मेरे पास आ बैठा और उसने भी एक और पेग बना के पिया।
हम दोनों बैठे देख रहे थे कैसे रोहित और सुमित उन दोनों को चोद रहे थे।
रोहित का लण्ड तगड़ा था सो उसने तो जॉनी की चीखें ही निकलवा दी।
पहले जो जॉनी सी सी कर रहा था, वो अब हाये हाये कर रहा था।
जब सुमित आंटी से फारिग हुआ तो आंटी मूतने चली गई, वापिस आकर बैठी तो बोली- एक पेग तो पिला यार !
एक क्या, आंटी दो पेग पे गई, पी कर बोली- अब और कौन चोदेगा मुझे, है किसी के लण्ड में दम तो आ जाओ।
यह कह कर आंटी ने अपनी जांघ पे पहलवानों की तरह दो-तीन बार हाथ मारे।
मुझे किए थोड़ा टाइम हो गया था तो मैं बोला- मैं आता हूँ आंटी, चल दिखा अपनी बूढ़ी चूत का दम।
तो आंटी बोली- अरे बच्चे, मेरी चूत में बहुत दम है, मैं तो उन लोगों से चुदी हूँ जो एक बार चढ़ते थे तो आधा आधा पौना पौना घंटा उतरते ही नहीं थे, ऐसे चोदते थे कि लगता था कि चूत को छील दिया हो, पर आज कल के लौंडे तो बस 5-10 मिनट में ही पिचकारी मार देते हैं, न उनके लौड़े में दम है न ही बदन में जान।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
हमें बड़ा अजीब लगा, क्योंकि हम तो खुद को बहुत बड़े फन्ने खाँ समझते थे, पर उसकी बातों से तो हमारी हवा ही सरक गई।
मैंने पूछा- आंटी ऐसी भी क्या बात है, इतने दम वाला कौन था जो हमें फिसड्डी समझती हो।
फिर उसने बताया- जब मेरी शादी हुई तो मेरे पति 25 बरस के थे, मैं उनसे नौ बरस कम की थी। मेरी सुहागरात शादी के तीन दिन बाद हुई और क्या ज़बरदस्त हुई। मैं तो अभी गुड्डे गुड़ियों से खेलती थी जब मेरी शादी हो गई। सुहागरात को पति ने जो मुझे पेला, सच कहती हूँ, 8 इंच का उसका मूसल जैसा लण्ड और मेरी चुहिया जैसी छोटी सी चूत, बेदर्दी ने इतने ज़ोर से डाला के मेरे तो खून के फुव्वारे छूट पड़े, और चीख चीख कर मैंने आसमान सर पे उठा लिया, पर वो न माना, मेरे दर्द की मेरे आंसुओं का उस पे कोई असर न हुआ, मैं तो दर्द के मारे बेहोश ही हो गई, उसने मेरे मुँह पर पानी के छींटे मारे, जब मैं होश में आई तो फिर से चोदने लगा, न जाने कितनी देर चोदता रहा, अगले तीन दिन मैं बिस्तर से नहीं उठ सकी, बुखार से तप रही थी, अगले दिन जो चादर जो बिस्तर पे बिछी थी, मर्दो की पार्टी में सबको दिखाई गई, कि देखो लौंडे ने सुहागरात प्र बिल्ली मार दी, उनके घर में जशन मनाया गया, और मैं बिस्तर पर पड़ी तड़प रही थी, घर की औरतें भी इस बात से बड़ी खुश थी।
जब ठीक हुई तो फिर वही कहानी, पर बाद में मुझे भी मज़ा आने लगा, अगले तीन महीने तक उसने बिना कोई नागा मुझे लगातार हर रोज़ चोदा, कभी कभी तो दिन में दो बार, तीन बार भी किया।
हम सब मुँह खोले उसकी बातें सुन रहे थे, ‘फिर, उसके बाद?’ मैंने पूछा।
‘फिर तो पूछो ही मत, उस जैसा मर्द तो मिलना ही मुश्किल है, मेरी जो तसल्ली उसने कारवाई है, और किसी ने नहीं, यह तो मेरी किस्मत खराब थी कि वो भगवान को प्यारे हो गए और मैं दुनिया के धक्के खाती खाती यहाँ आ पहुँची।
‘और यह जॉनी, ये कौन है?” सुमित ने पूछा।
‘यह तो मेरा सच में भतीजा है, बचपन से इसको गाँड मरवाने की आदत पड़ गई, कहते हैं दिल्ली में इसका इलाज है, वही जा रहे हैं।’ ‘तो जॉनी भाई, दिल्ली जा कर गाँड मरवाने की आदत छुड़वाने जा रहे हो?’ रोहित ने पूछा।
‘जी !’ वो बोला।
‘तो जाने से पहले हमारा मन तो भरते जाओ, तुम्हारी गाँड तो आंटी की चूत से भी ज़्यादा टाइट और मज़ेदार है।’
जॉनी ने आंटी की तरफ देखा- अरे चुदवा ले, फिर पता नहीं यह मौका मिले या नहीं।
आंटी की बात सुन कर जॉनी के हल्की सी स्माइल दी।
हमने दूसरी बोतल के भी आखरी पेग बना कर पिये और सब के सब जॉनी के आस पास इकठे हो गए।
मैंने अपना लण्ड उसके मुँह में दिया और सुमित कोंडोम चढ़ा कर उसकी गाँड पर बैठ गया। उसके बाद तो चल सो चल। दिल्ली तक हम बारी बारी उसकी गाँड मारते रहे, कभी आंटी के मम्मे दबा लेते कभी उसको लण्ड चुसवा लेते, पर ठोका सिर्फ जॉनी को।
और पता ही नहीं चला कि कब दिल्ली आ गई।
आज भी जब भी हम सब इकट्ठे होते हैं, तो उस ट्रेन के सफर के यादें ज़रूर ताज़ा करते हैं।